गुरुवार, 11 जनवरी 2024

ये जो आज की मिडिया की कमाई है उसका ही कमाल है Driver rools सहमति से लागू होना


 मिडिया का खेल देखो एक डीएम को हटाया और देश मे खवर चला दी क़ानून हटा दिया. जिसके कारण सभी ड्राइवर अपने अपने काम पर चले गए और क़ानून यतास्थित रहा.
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid02z3b4LqESRs9748byL1zSQL21Bak9gJ21EXWRv2ZFQmAGCECxZmJuc9h8R8bUdo1al&id=100042784159093&mibextid=Nif5oz

यही नही देश को बर्बादी के लिए विकास बनाने मे ये ही न्यूज वाले दिन रात महनत कर रहे है.

और जनता को यही लगता है की लोग परेशान सिर्फ हमारे क्षेत्र के है बाकी जगह सव ठीक है.

क्योंकि न्यूज भी यही दिखाते है. और लोग जो देख रहे है उस पर विश्वास भी कर लेते है. यही नही कुछ ऐसे भी लोग है जो भीड़ एकत्रित कर इनकी ख़वर को ही साक्षी मानते है.

ये वो लोग है जो बुद्धिहीन व सम्पूर्ण रूप से मुर्ख हो चुके है

क्योंकि उनको भी लगता है कि एक असमाजिक प्रवृति का इंसान जो फैसले ले रहा है वो ही सही है. अगर वो नही होता तो भगवान को कोई नही बचा पाता. हिन्दू विलुप्त हो गए होते और लोग जंगलो मे रहने को मजबूर हो गए होते. ये मूर्खो को बहम है और मिडिया की ये आज की सोच है.https://twitter.com/yadavakhilesh/status/1745674733675512056?t=ChEISqEBCIsENuDOkzDniA&s=19

जबकि मेरी नजर मे सव इसके विपरीत है

भगवान ने ही दुनियां बनाई है भगवान को कोई बचाए ये सिर्फ कोरा झूठ व धर्म के नाम पर मजाक है.

और देश के लुटेरों को विदेश भगाने से पहले भी देश धनवान था. लोग बड़े बड़े घरो मे रह रहे थे. जो गिराए जा रहे है.

लोग अपनी फसलों मे लगाने के लिए खाद बीज दबाई खरीद पा रहे थे 

सवारी चलाने के लिए आज से आधे दाम मे तेल खरीद पा रहे थे.

गरीव आज से तिहाई दाम मे गैस सिलेंडर ले पा रहे थे

और तो और रिश्वत भी अव दस गुना महंगी हो गईं है

जिससे इन दलालों की इनकम भी बढ़ गईं है

और चंदा भी आज कल देश के कर्ज कई गुना बढ़ गया है

जो शिक्षा व गरीवो के लिए सायद शून्य है

     ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️निर्वेश क्रांतिकारी 

बुधवार, 10 जनवरी 2024

सच समझें कॉन्वेंट का मतलब क्या है


 कान्वेंट शब्द पर गर्व न करें... 

सच समझें कॉन्वेंट का मतलब क्या है?https://twitter.com/nirveshky/status/1595628905494609921?t=Kjj7QomIXLZtE7W4Gd6v1A&s=19


‘काँन्वेंट’ ! सब से पहले तो यह जानना आवश्यक है कि, ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं।


ब्रिटेन में एक कानून था, " लिव इन रिलेशनशिप " बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था।


अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने काँन्वेंट खोले अर्थात् जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज हैं , उनके लिए ये काँन्वेंट बने।


उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयो में एक फादर एक मदर एक सिस्टर की नियुक्ति कर दी क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज।


इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन् 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और 

भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन् 1842 में खोला गया था। परंतु तब हम गुलाम थे और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं।


जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में

कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं।


मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि 

“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में भी कुछ पता नहीं होगा।


इनको अपने मुहावरे ही नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा।


अरे ! हम तो खुद में हीन हो गए हैं। जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म हो, दूसरों पर क्या असर पड़ेगा ?

लोगों का तर्क है कि “अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है”।


दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में ही बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है?  


शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईसा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। 

ईसा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी।

अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी। समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी।


भारत देश में अब भारतीयों की मूर्खता देखिए…  


जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं, वो काँन्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ एक बाप घर पर है और दूसरा काँन्वेन्ट में जिसे फादर कहते हैं। आज जिसे देखो काँन्वेंट खोल रहा है जैसे- "बजरंग बली काँन्वेन्ट स्कूल", माँ भगवती काँन्वेन्ट स्कूल"।  

अब इन मूर्खो को कौन समझाए कि, भईया माँ भगवती या बजरंग बली का काँन्वेन्ट से क्या लेना देना?


दुर्भाग्य की बात यह है कि, जिन चीजों का हमने त्याग किया अंग्रेजो ने वो सभी चीज़ों को पोषित और संचित किया फिर भी हम सबने उनकी त्यागी हुई गुलाम सोच को आत्मसात कर गर्वित होने का दुस्साहस किया।

आइए आगे से जब भी हमसे कोई आश्रय कॉन्वैंट स्कूल की बात कहेगा या करेगा तो उसे उपरोक्त तथ्यों से परिचित अवश्य कराएंगे।साभार ✍️🙏

                                         ✍️✍️✍️✍️निर्वेश क्रांतिकारी 

मंगलवार, 9 जनवरी 2024

ESW का मतलब सामान्य बर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोग. ESW केटेगिरी मे SC, OBC, ST, के किसी भी भारतीय ब्यक्ति को शामिल नही किया जाता है

बिस्तार 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया था। इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया किया था। इसके बाद से ही इस आरक्षण के खिलाफ विवाद खड़ा हो गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने पर अपनी मुहर लगा दी है। मामले की सुनवाई करते हुए पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने EWS आरक्षण के पक्ष में 3: 2 के अंतर से अपना फैसला सुनाया। तीन न्यायाधीश ने अधिनियम को बरकरार रखने के पक्ष में जबकि चीफ जस्टिस और एक न्यायाधीश ने इसपर असहमति जताई। आइए अब जानते हैं सुप्रीम कोर्ट में ये मामला क्यों पहुंचा था? EWS आरक्षण का फायदा किन्हें मिलेगा?

EWS का मतलब है आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण। यह आरक्षण सिर्फ जनरल कैटेगरी यानी सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है। इस आरक्षण से SC, ST, OBC को बाहर किया गया है। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया था। इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया किया था। वैसे कानूनन, आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अभी देशभर में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को जो आरक्षण मिलता है, वो 50 फीसदी सीमा के भीतर ही है। मामला यहीं फंस गया था कई लोगों को आपत्ति थी कि सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण मिलने से यह करीब 60 फीसदी के बराबर हो जाएगा जो कि संविधान को घोर उल्लंघन है। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई थीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इसके अलावा फरवरी 2020 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में पांच छात्रों ने भी आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर की थी।  


50 फीसदी सीमा में किसे कितना आरक्षण, केंद्र सरकार ने दी सफाई

50 फीसदी सीमा में ओबीसी को 27 फीसदी, एससी को 15 फीसदी और एसटी को 7.5 फीसदी आरक्षण मिला है। लेकिन सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण मिलने से यह सीमा 59.5 फीसदी हो जाती है। लेकिन केंद्र सरकार ने इसपर सफाई देते हुए कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को हमने नहीं तोड़ा है क्योंकि 1992 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।

                       ✍️✍️✍️✍️✍️निर्वेश क्रांतिकारी 


सोमवार, 8 जनवरी 2024

इसे कहते है भक्ती की आड़ मे बिजनेस

 

इसे कहते है भक्ती की आड़ मे बिजनेस ✍️✍️✍️

ये कोई इत्तेफ़ाक़ नही बल्कि मोदी सरकार की साजिस है

एक तरफ राम मंदिर के नाम पर लोगों के बीच अपने राम भक्त होने का प्रचार कर रहे है.

और राममंदिर की आड़ मे उस बन को काट रहे है जिसमे भगवान राम ने बनबास के समय 10 साल गुजारें थे.

उत्तर प्रदेश मे 46000 करोड़ टैक्स गायव

 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने बताया है कि प्रयाग महाकुंभ के 45 दिनों में 3 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला है। लेकिन फरवरी में उत्तर प...